आज कर्नाटका के आम चुनावो के नतीजे आये कुछ दिनों से ऐसे हवा चल रही थी की शायद किसी भी दल को बहुमत ना मिले सुबह जब वोटो की गिनती शुरू हुई तो लगा की शायद ये बात गलत साबित हो जाए और पहले ऐसा लगा भी जब बीजेपी ११० से भी ज्यादा सीट्स जीत गई पीर राजनीती का खेल पलटा और जैसा की लास्ट मिनट रिजल्ट पे होता है उठा पटक वो हुई की कांग्रेस और जनता दल स की सीटे बढ़ी गई और जैसे की राजनीती के पंडितो ने कहा था वैसा ही हुआ किसी को बहुमत नही बाद में कर्नाटक बीजेपी के नेता और CM कैंडिडेट बीएस येदुरप्पा जी सामने आये उन्होंने ये कहा की सबसे बाड़ा दल बीजेपी हैं जिसके पास 105 सीटें होने के कारन उन्हें सर्कार बनाने का मौका देना चाहिए और आज बहुत सारे राजनीती के पंडित इसी बात की वकालत क्र रहे थे इसे सुन क्र हसी आती हैं की गोवा और मणिपुर के चुनावो में राहुल गाँधी की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सबसे बाड़ी पार्टी बन क्र उभरी थी जिसके पास गोवा में ही 40 में से 19 विधयक थे और ऐसा ही मणिपुर में भी हुआ पर उन्हें सर्कार बनाने के लिए नही बुलाया गाया और बीजेपी ने सर्कार बना ली हालांकि ऐसा पहली बार नही हो रहा हैं इससे पहले सन 1996 का भी एक किस्सा दिमाग में आता है
1996 के संसद के चुनावो में किसी भी दल के पास बहुमत नही था सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी थी १६० सीटो के साथ दुसरे नंबर पर कांग्रेस थी 140 सीटो के साथ फिर भी राष्ट्रपति शंकर स्याल शर्मा शर्मा जी ने बीजेपी और अटल बिहारी वाजपेयी जी को सर्कार बनाने का मौका दिया जबकि उस वक़्त तीसरा मोर्चा के पास बहुमत था जिसे वामदल और कांग्रेस का बहार से सपोर्ट था जब वाम दल और जनता दल के नेताओ ने राष्ट्रपति जी से यह पुछा की आपने बिना बहुमत के उन्हें सर्कार कैसे बनाने दी तो शर्मा जी ने कहा क्यूंकि वो सबसे बाड़ा दल हैं इसलिए पर जब 1998 में बीजेपी ने फिर सर्कार बनाने का दावा पेश किया तो नये राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन ने ये साफ़ कर दिया की वही दल सरकार बना सकता हैं जिसके पास बहुमत हो न की सबसे ज्यादा सीट्स.
एक बार एक न्यूज़ चैनल पर अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ये इलज़ाम लगाया था की की सन 1997 में केंद्र सरकार के लोगो ने उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार बनाने में मुशिकिल खाड़ी की थी जिसके लिए वह के राज्यपाल का इस्तेमाल हुआ श्याद उन्हें अब ये देख क्र दुःख हो रहा होगा की उत्तराखंड, अरुणांचल , मणिपुर और गोवा में उनके चेलो ने भी वही किया जिसका पीड़ित या शिकार वो अपनी पार्टी को मानते थे पर एक बात सब जानते हैं की सब कुर्सी का खेल है.
हैरानी की बात ये भी है की आज वही लोग जो खुद सत्ता के लिए दुसरे डालो को सर्कार बनाने से रोकते थे आज जब वो उन्हें के साथ हो रहा हैं और वो चीख चीख कर अपना दुःख बता रहे है लेकिन सब जानते है राजनीती में ये सब आम हैं और अब मेरा सवाल राहुल जी से भी है की क्या आप अब सरकार उसी मनमाने तरीके से बनायेंगे जैसा तरीका इस्तेमाल करने पर आज बीजेपी को लताड़ चुके हैं देखते है क्या होता है
इतिहास ऐसा कई वाक्यों का गवाह रह चूका है जब किसी मुद्दे को ले कर राजनीती की उस दल ने उसे मुद्दे पर विपक्ष के तौर पर उसके और सरकार के खिलाफ खूब हल्ला किया और जब सत्ता में आये तो सुर ही बदल गाये चाहे वो उद्योगीकरण, आधार, मनरेगा, GST या फिर कोई और मुद्दा हो एक लम्बी लिस्ट हैं और ये सिर्फ केन्द्र्ये राजनीती में ही नही स्टेट राजनीती में भी हुआ है यहाँ तक की इलेक्शन जीतेने के लिए अभी कर्नाटका के चुनाव से पहले सिद्धारामिया जी ने लिंगायतो को अलाप्संख्यक का दर्जा देने की वकालत की जबकि कुछ साल पहले कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र की UPA सरकार ने इस मांग को खरिग किया था एक तरफ बीजेपी के लोग गौ का मान बंद करने पर राजनीती करते हैं वही पर उनके 2 राज्यों के मुख्यमंत्री अपने राज्य में इसे लागु नही करते हैं वोट बैंक या कुछ और कारणों के चकर में
तो समजदार जानते है मी राजनीती के जरिया है असली वजह वोट बैंक है और यही हमेशा से राजनीती का आखरी लक्ष्य रहा है और क्यूंकि ये सब करते हैं इसलिए सिर्फ एक दल को ही दोष देना ठीक नही हैं
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