भारत में हमेशा से मीडिया को एक सही नज़रिए से ही देखा गाया हैं सूचना का एक आधार जो सिर्फ सच बोलता हैं और इतिहास में भी मीडिया और पत्रकारिता का एक महात्वपूर्ण स्थान रहा है भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी जब साउथ अफ्रीका में थी तब अमेरिका के मशहूर पत्रकार वेब मिलर उनसे मिलने गाये जहा पर उन्हें वेब मिलर से पत्रकारिता की तारीफ करते हुए यही कहा की समाज को साथ लाने के लिए अख़बार का होना बहूत ही ज़रूरी है और बाद खुद गाँधी जी ने भी इंडिया ओपिनियन , हरिजन और यंग इंडिया नाम से अख़बार और पत्रिकाए निकली और खुद लोकमान्य बल गंगाधर तिलक और गोपाल गणेश अगरकर जैसे क्रन्तिकारी भी केसरी और मराठा जैसे प्रसिद्ध अखबारों के संस्थापक रहे है और खुद पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने हिंदुस्तान टाइम्स नाम का एक अख़बार भी निकला जो आज तक चल रहा और भारत के सबसे मशहूर अंग्रेजी अखबारों में से एक है और आज भारत में 21 से भी ज्यादा भाषाओ में अख़बार निकलते है जिनकी गिनते 13000 से भी ज्यादा है लेकिन साथ में मीडिया के और भी हिसे आ गए हैं जिसमे मैगजीन्स हैं जो की 99000 से भी ज्यादा हैं 400 से भी ज्यादा न्यूज़ चैनल्स हैं और अब तो डिजिटल मीडिया भी है जो की ऑनलाइन है पर अब अफ़सोस ये हैं की ज्यादा तर मीडिया हाउसेस अब सिर्फ अपने प्रॉफिट की तरफ ही लगे हुए है हालाँकि की इसमें कोई बुरी बात नही है किसी भी अख़बार ,न्यूज़ चैनल, मैगज़ीन या वेब मीडिया को चलने के लिए पैसो की ज़रुरत होती हैं तो उसे कोई आपति नही है पर इसके लिए गलत खबरे फैलाना ज़हर फैलाना ठीक है अभी हालही में ऐसे ही एक मामला सामने आया जिसने हिंदुस्तान को हिला दिया
कोबरा पोस्ट नाम की एक ऑनलाइन मीडिया संसथान ने कुछ मीडिया हाउसेस के मार्केटिग एग्जीक्यूटिवस का स्टिंग किया जिसमें एक पत्रकार आचार्य अटल के नाम से इन लोगो से मिले और एक सांप्रदायिक कंटेंट छपने या दिखने के लिए 200 करोड़ से भी ज्यादा की रकम ऑफर की और कई बाड़े बाड़े मीडिया हाउसेस जिनके नाम में लेना नही चाहता हूँ मान गाये इसके लिए और इन में राष्ट्रया मीडिया के अख़बार और न्यूज़ चैनल्स भी थी जिनको में भी देखता हूँ हर दिन प्राइम टाइम में हालाँकि बंगाल के 2 लोकल अख़बार बर्तमान और दैनिक संबाद ने इस ऑफर को ठुकरा दिया जो की में मानता हूँ की एक बहुत ही अच्छा फैसला था और भारत का चौथा स्थाम्ब यानी की मीडिया इन्हें अख़बार और न्यूज़ चैनल्स की वजह से ही बचा हुआ है पर बाद में कोर्ट के फैसले के बाद इस स्टिंग पर स्टे लग चूका है
पिछले साल भारत के एक नेता के बेटे की कंपनी की एसेट्स की खबर छपने की बात आये थी तो सिर्फ भारत के यही लोकल अखबारों ने ही इस खबर को छापा था क्यूंकि राष्ट्रीय मीडिया के लोग उस नेता के द्वारा दिए गाये मानहानि के नोटिस के डर की वजह से उस खबर को छु नही रहे थे
हालाँकि एक मीडिया हाउस जिसका न्यूज़ पेपर और न्यूज़ चैनल दोनों ही है जो की इस स्टिंग में पकड़ा गाया था उसने ये दावा किया की उसे पता था की आचार्य अटल का नाम लेने वाला व्यक्ति कोबरा पोस्ट का आदमी था इसलिए उन्होंने ने जो कुछ भी वह कहा सब नाटक था और उन्होंने भी एक रिवर्स स्टिंग किया था उस वक़्त जिसका विडियो वो जल्द ही वायरल करेंगे और अभी भारत में एक और मशहूर पत्रकार सिद्धार्थ वन्द्रजन जी ने भी एक आर्टिकल लिखा अपनी साईट द वायर पर जिसमें उन्होंने ऐसे ही मीडिया के बारे में लिखा और अपने भी कुछ एक्स्पेरेंसस शेयर किये जो की मीडिया के इस ज़हर उगलने वाले सेक्शन को पूरी तरह से एक्स्पोसे करता है जो की कुछ भी छपने या दिखने को तयार है.
कुछ महान बुद्धिजीवी इसे मीडिया का भगवाकरण मानते है वो कहते है मीडिया के कुछ हिस्से का भगवाकरण मानते है पर शायद ये सच न हो क्यूंकि काये पत्रकारो का मन्ना भी यही है की ऐसे मीडिया हाउसेस और अख़बार सिर्फ पैसे के लिए काम करते है अगर कल भारत में फिर से सेचुलारिस्ट्स या वामपथियो की भी हुकूमत हो जाए न और वो भी उनको इतना ही पैसा ऑफर करें तो वो उनके लिए भी काम करेंगे तो इसमें कोई विअचार्धारा या भगवा कारन का एंगल लाना शायद जल्दबाजी होगी और इस पर आज किसी को दोष देना ठीक न हो क्यूंकि ऐसे इलज़ाम तो मीडिया हाउसेस पर पता नही कितने सालो से लगते आ रहे है कुछ साल पहले राडिया टेप्स नाम का एक मुदा भी सामने आया था जिसमें भारत के कुछ ऐसे पत्रकार भी एक्स्पोसे हुए थी जो खुद को इमानदार या आज की सर्कार के दौर में anti एस्टाब्लिश्मेंट बताते है हालाँकि आज तक किसी पर भी कोई भी इलज़ाम साबित नही हुआ है
स्टिंग पर क्या भरोसा किया जा सकता है
स्टिंग के खुलासे हमेशा से ही बाड़े कोन्त्रोवेर्सिअल रहे है हिंदुस्तान में भारत के कई बाड़े मीडिया संस्थान हमेशा से स्टिंग के खिलाफ रहे है में कई संपादको को टीवी या दूसरी जगह हमेशा पत्रकारों को स्टिंग ना करने की हिदायत देते हुए देखा क्यूंकि कई बार स्टिंग गलत भी साबित होते रहे हैं अगर ये स्टिंग भी गलत साबित होते है तो बहुत बड़ा हंगामा हो सकता हैं इसलिए इन् पर इतना भरोसा नही हो सकता हैं कुछ लोगो को पर ये देखना ज़रूरी है की क्या होता है आगे क्यूंकि ये इलज़ाम सही है तो इस पर एक्शन लेना सही है वर्ना ऐसे गलत स्टिंग्स पर प्रतिबन्ध होना चाहिए
हालाँकि ख़ुशी इस बात की की है जो लोकल मीडिया हाउसेस हैं या अख़बार हैं उन्होंने इस खबर को ना लेकर जो किया हैं काम वो काबिल ऐ तारीफ हैं.
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